हाल कैसे कहे अनकही दोस्ती ।
हाल कैसे कहे अनकही दोस्ती ।
उम्रभर हाशिये पर रही दोस्ती ।।
सब्र हमने जफ़ाएँ किया है बहुत ।
दर्द उनको मिला तो ढही दोस्ती ।।
वरना झूठे रहे मेरी यादों के पल ।
मैं न बोलू तो समझो सही दोस्ती ।।
फ़ायदों के लिये क़ायदा छोड़ दे ।
है जफ़ा वो यक़ीनन नही दोस्ती ।।
इल्म हो हाल दिल का छुपा न रहे ।
या ख़ुदा की क़सम है वही दोस्ती ।।
राम केश मिश्र।