हाल ए बुजुर्ग
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जहाँ बुजुर्गों का होता हो अपमान
कैसे हो सकता है कोई देश महान
जीवन भर की संचय की गई पुँजी
बच्चों के सुपर्द कर हो जाते नादान
कोने में बैठे ,बन जाते हैं वो लाचार
कर अपने सारे अरमानों को निसार
अंगुली पकड़ कभी चलना सीखाया
उन्होनें ही आज उन्हें घर से भगाया
भूखे प्यासे,बन बेचारे कटते बुढ़ापा
निज के ही खून खोने लगे हैं आपा
स्वर्गतुल्य घर को खुशी से बनाया
संतानों ने बेघर का ररास्ता दिखाया
नई पीढी है नवीन तकनीक अधीन
जिन्दगी जी रहे हैं जैसे कोई मशीन
नहीं चाहिए धनदौलत और खजाने
बस चाहिए प्रेमक्षके दो बोल पैमाने
मनसीरत कब ,लेगा रृकोई सुध बुध
बुजुर्ग बन कर बैठे हैं मकानों में बुत
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़िया राओ वाली (कैथल)