//…हाल-ए-दिल…//
//…हाल-ए-दिल…//
समाज की ,
कुछ बंदिशे
इश्क पर ,
छाती गर्दीशे…!
ना तुम मेरी ,
ना मैं तेरा
हम एक-दूसरे
के भी होके…!
तेरे पास से ,
गुजर कर भी ,
ना अपना ,
कुछ कहा
ना तेरा हाल ,
पूछ सके…!
मगर इतना तो ,
मालूम चले तुम्हें
हम रोए बहुत ,
तन्हा – तन्हा ,
चुपके – चुपके…!
चिन्ता नेताम ” मन ”
डोंगरगांव ( छ. ग.)