हाला हम निशदिन पियें
हाला हम निशदिन पियें, मथ स्वप्नों को मीत ।
देव पराजित हो चले, गये निशाचर जीत ।।
गये निशाचर जीत, हुआ पापी का शासन ।
हाय सिसकती प्रीत, सभा में मस्त दुशासन ।।
कह दीपक कविराय, सुरक्षित कहीं न बाला ।
पाप अमर मुस्काय, लिये हाथों में हाला ।।