” हालात-ए-हाज़िरा “
मसर्रत का कहीं मन्ज़र नहीं है,
ग़मों से कोई ख़ाली, घर नहीं है।
मुक़द्दस राह पर, चलना है लाज़िम,
सदाक़त सा, कोई भी ज़र नहीं है।
चला जाता है वो, मुँह को छुपाए,
सुना था, दिल से वो पत्थर नहीं है।
सभी दो-चार हैं, रँजो-अलम से,
दिखे चेहरा, जो दीदे-तर नहीं है।
परिन्दा हूँ, हवादिस झेलता हूँ,
जिसे हो ख़ौफ़, मेरा पर नहीं है।
गिला अब दुश्मनों से, क्या है करना,
जो था अपना भी, कोई कम नहीं है।
ख़ुदा सब पे ही, रहता है मेहरबाँ,
करम के उसकी, कोई हद नहीं है।
न हो मायूस, हो “आशा” का आलम,
है मँज़िल पास, कोई डर नहीं है..!
मसर्रत # ख़ुशी, cheerfulness
मन्ज़र # दृश्य, scene
मुक़द्दस # पवित्र, holy
लाज़िम # अनिवार्य, compulsory
सदाक़त # सच्चाई, truthfulness
ज़र # सम्पत्ति, wealth.
रँजो-अलम # दुख-दर्द, grief and agony
दीदे-तर # आँखों मेँ आँसू, tears in eyes
हवादिस # हादसे, दुर्घटनाएं, accidents
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रचयिता-
Dr.asha kumar rastogi
M.D.(Medicine),DTCD
Ex.Senior Consultant Physician,district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist,sri Dwarika hospital,near sbi Muhamdi,dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M.9415559964