हार हूँ
अद्भुत अनभूति हूँ,
अनकही सी प्रीति हूँ।
ईश्वर का उपहार हूँ,
कुछ नहीं बस हार हूँ।
बिना कीमत के बिका हूँ,
लंबे धागे में टिका हूँ।
पुहुप का एक राशी हूँ,
हरता उदासी हूँ ।
प्रियसी की काली लम्बी
बेनी का श्रृंगार हूँ,
कुछ नहीं बस हार हूँ।
सरल नहीं वक्र हूँ,
बना पुष्पचक्र हूँ।
किसी महा पुरुष के,
शव पर अर्पित फक्र हूँ।
अर्थी के चादर के ऊपर,
सुमन की फुहार हूँ,
कुछ नहीं बस हार हूँ।
फूलों की माला हूँ,
देवों पर डाला हूँ।
श्रद्धा का प्रतीक बन,
भक्ति का हवाला हूँ।
साधना आराधना में,
ईश्वर का मनुहार हूँ।
कुछ नहीं बस हार हूँ।
वीरों से प्रीत हूँ,
जिसके बिना रीत हूँ।
योद्धा के गमन पथ का,
हार बन कर जीत हूँ।
मातृभूमि पर मर मिटे जो,
उन पर चढ़ साकार हूँ।
कुछ नहीं बस हार हूँ।
-सतीश सृजन