हार बनती जा रही है ।
माँ कलेजे से लगा बन,लोरियाँ सद्भाव पाकर,
लाड़ले को प्रेम का उपहार बनती जा रही है ।
प्रीत दिल में है जगाए, नेह दीपक यूँ जगाकर,
प्रेम का सुंदर सुघड़ आगार बनती जा रही है ।
हार है मेरा सलौना गोद ही उसको बिछौना,
हारकर लाला गले का हार बनती जा रही है ।
प्यार की मूरत कहीं पर, देखना चाहो अगर तो,
माँ दिलों में आ समा उद्गार बनती जा रही है ।
दीपक चौबे ‘अंजान’