हार की जीत
हौसला, इंसान में बहुत होता है
अपने झूँठे, तिलिस्मी स्वाभिमान के लिए
अपने सपनों के लिए
अपने अपनों से भी लड़ जाता है
जीतने के लिए
उल्टे सीधे तिकड़म भिड़ाता है
उसकी हिम्मत, उसकी मेहनत,
उसका साहस रंग दिखाता है
वह लड़ाई में जीत तो जाता है
जीतकर अपनी ताकत पर इतराता है
पर इस तरह जीतकर भी
जिंदगी की असल
बाज़ी हार जाता है।
कभी चुनौती मिले उसे
खुद से भी लड़कर देखे
अपने गिरेबान में झाँके
बुराइयों को आँके
उनके सामने अड़कर देखे
वह इस चुनौती से
भागता नज़र आता है
न जाने किस वज़ह से घबराता है
वह अपने आपसे नहीं लड़ पाता है।
जिस दिन वह खुद का सामना
करने का साहस करेगा
जिस दिन उसे खुदा का डर लगेगा
वह दुनियाँ की किसी ताकत से नहीं डरेगा।
फिर अपनों से नहीं
वह अपने आप से लड़ेगा
जीतने के सारे जतन
सारे तिकड़म भी करेगा।
अपनों से हार के हार भी
खुशी से कबूल कर लेगा।
चुभन देने वालों को फूल देकर
अपनी किस्मत के काँटों को
सुंदर महकते फूल कर लेगा।
अपने आप से लड़ेगा टकराएगा
अपनों के साथ तो बस
प्यार के गीत गुनगुनाएगा
सिर झुकाएगा, हार भी मान जाएगा
मगर दावा है, हारकर भी जीत जाएगा।
संजय नारायण