“हारी नहीं हूँ”
बहुत दूर चलकर लौटी हूँ तो क्या, मैं हारी नहीं हूँ ।
कुछ छाले और जख्म ही है पग में, मैं बेचारी नहीं हूँ।
हर जिम्मेदारी का बोझ उठा लूं, किसी पे भारी नहीं हूँ।
कुछ मुश्किलें है मग में पर हार जाउ, मैं वो नारी नहीं हूँ।
जूनून का शोला, हिम्मत की आग हूं, मैं किंचित चिगांरी नही हूँ।
आँधी सी चाल,बिजलियों सी गर्जना ,कोइ हिरनी मतवारी नहीं हूँ।
-शशि “मंजुलाहृदय”