हाय रे गर्मी
हाय रे गर्मी क्यूं इतना इतराती हो,
बच्चे, बूढ़े सबको रुलाती हो।
बेचैन है लोग आपके सितम से,
इसीसे इतना तडपाती हो।
कभी तो दया करो इन मासूम पर,
बारिश बन राहत बन जाती हो।
लानत है ऐसी गर्मी जो लहर सी आयी,
कब छुटकारा तुम दिलाती हो।
अनिल “आदर्श”