हाय ! ये क्या हुआ?
साम -दाम -दंड -भेद,
क्यों जन्मे झूठे मतभेद ?
उठा नकाब, दिखी सच्चाई,
सदमें मे है शब्द अब,
विश्वास मनाये खेद !!
हाय ! ये क्या हुआ?
किस की काली नज़र ने छुआ ??
हाल मेरे विश्वास का क्यों ऐसा हुआ….
टूटा हुआ धागा विश्वास का……
क्या कभी बैशाखी पर खड़ा हुआ ??
जीवन मे सफलता प्राप्त करना हर कोई चाहता है ,और जब सफलता की पिपासा बर्दाश्त से बाहर हो; तब ये पिपासा उचित-अनुचित हर तरह के माध्यमों के इस्तेमाल को तर्कसंगत साबित कर देती है. मानो उचित-अनुचित तरीके से सफलता को आगोश मे ले भी लिया.
लेकिन हाय ! ये कैसे भूल गये कि साध्य यानी मंजिल को पाने के लिये साधन की सत्यता और पवित्रता अत्यंत आवश्यक है, साध्य और साधन दोनो की शुचिता और सत्यता मंजिल को चुम्बक की तरह आकर्षित करते हैं अन्यथा “यथा-तथा” कर के प्राप्त की गयी सफलता; किसी बेवफा से कम नही होती जो कब दगा दे जाये ये तो परमेश्वर भी नही जानता.
सामाजिक और सार्वजनिक जीवन की सफलताओं की बुनियाद सत्य और विश्वास के मज़बूत कंक्रीट पर रखनी चाहिये क्योंकि फरेब और आडम्बर से निर्मित महल का जीवनकाल पानी के बुलबुले सरीखा होता है जो कब धराशायी हो जाये, ये काल का टाइम टेबल भी नही जानता. परिणामस्वरूप विश्वास और सच पर वो आत्मघाती हमला होता है कि आपके समर्थक भी आपको धिक्कारने लगते है,अपने आपको भी कोसने लगते है’! खासकर उनका स्मरण कर के कल्पना कीजिये कि उनके कलेजों पर कौन- कौन सी छूरीया चलती होगी जो अपनो से बागी हो कर आपके आडम्बरपूर्ण महल की ईंट बन जाते है.
क्या आम लोगों के टूटे हुये विश्वास का मुआवजा दिया जा सकता है ? क्या बागीयों की ससम्मान घर वापसी हो सकती है ? क्या आप अपने आत्मविश्वास को पुनः जीवित कर सकते है ? क्या उन उम्मीदों को डूबने से बचाया जा सकता है जो आपसे जुड़ी हुई होती है ? सवालों के घेरे मे आप नही आते, सवालों के घेरे मे वो सब आते है जिनका आने वाला कल आप के हाथों की लकीरों मे समाया होता….!!
✍ सत्यवान सौरभ
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