** हाय नी नींद निगोड़ी **
डा ० अरुण कुमार शास्त्री
एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
** हाय नी नींद निगोड़ी **
बैरन हो गई नींद निगोड़ी
पल पल उखड़ी नींद निगोड़ी
ना काहू से बैर भयो
ना काहू से प्रीत है मोरी
बैरन हो गई नींद निगोड़ी
पल पल उखड़ी नींद निगोड़ी
कैसा खेल रचाया विधाता
समझ किसी के न आया
कर कर जतन पीड़ गई ना
बैरन हो गई नींद निगोड़ी
पल पल उखड़ी नींद निगोड़ी
मन मर्जी के भोजन खाए
मन मरजी के स्वांग रचाये
सुन्दर सुन्दर आभूषण से
हमने नख शिख अंग सजाए
फिर भी ये तो पास न आई
पल में रूठी पल में छूटी
लाज तनिक न इसको आये
बैरन हो गई नींद निगोड़ी
पल पल उखड़ी नींद निगोड़ी
वैद् बुलाया नबज दिखाई
स्वर्ण भस्म संग ली दवाई
इन्जेक्शन के भी कोर्स किए
जाने कितने टेस्ट , कराये ……
बैरन हो गई नींद निगोड़ी
पल पल उखड़ी नींद निगोड़ी
नीम हकीम से असमन्जस में
नीम की धूनी भी लगबाई
पूरे तन को तेल लागाया
माटी मल मल खूब लगाई
त्राटक सीखा योगा सीखा
ध्यान में जा कर ध्यान किया
सन्त न छोडे साधु न छोडे
राधे माँ तक भी थी बुलबाई
दूध पीये भाति भान्ति के
रगड़ं रगड़ं कर करी मलाई
बैरन हो गई नींद निगोड़ी
पल पल उखड़ी नींद निगोड़ी