हादसे
ज़िंदगी के हादसे मुझे जीने नहीं देते ,
कोशिश करता हूं फिर ग़म के अंधेरे घेर लेते हैं ,
रोशन शुआओं की तलाश में भटकता फिर रहा हूं,
संग-ए- अलम की ठोकर खाकर संभलता बढ़ रहा हूं,
ज़ेहन में अनजाने खौफ़ के साए पल रहे हैं ,
अजीब सी कश्मकश के माहौल में जी रहे हैं,
ज़ब्ते ग़म हौसलों पर हावी है ,
दिल में बेकली बे -इंतिहा भारी है,
न जाने क्यूं इस- क़दर कुदरत का क़हर ,
वक्त दर वक्त पेश़ आ रहा है?
न जाने क्यूं मुझसे खफ़ा ख़ुदा,
मेरे किस क़ुसूर की सज़ा दे रहा है?