हादसा
हादसा
दुनिया को उनके प्रति दिखाई गई संवेदना के बल पर परखते हैं,
लोग देश के साथ हुए हादसों का भी हिसाब रखते हैं।
हादसे तो जनता के साथ गुज़रे हैं, और धोखा भी बहुत खाया ।
पर उसे उनका हिसाब रखना और प्रदर्शन करना कभी नहीं आया ।
आजकल तो सच्चे झूठे हादसे घड़ लिए जाते हैं,
फिर सहानुभूति पाने को उनकी दुकान सजाते हैं ।
यह हुनर भोली जनता को नहीं आता है,
अनजाने में अक्सर हादसा एक उतर आता है ।
भोली जनता के हाथों 2014 में एक हादसा हो गया,
एक ऐसा हादसा जो देश को गहराइयों में डुबो गया ।
हादसे के फलस्वरूप गलत हुक्मरान चुना गया,
अनजाने ही देश को बेचने का जाल बुना गया ।
हुक्मरानों ने हादसे को अवसर में बदल डाला ।
देश की वितीय स्थित का निकाल दिया दिवाला ।
कुछ लोगों की नज़रों में 2014 का हादसा आज़ादी हो गया,
अनजाने में ही मतदाता 2014 में विनाश का बीज बो गया ।
आज़ादी में लाखों का बलिदान उसने अपमानित कर दिया ।
उसने 2014 के दुखद हादसे का नाम ‘आज़ादी’ कर दिया,