हाथ मेरे हैं बँधे हाथ मिलाऊँ कैसे
ग़ज़ल
हाथ मेरे हैं बँधे हाथ मिलाऊँ कैसे।
पास होकर भी तेरे पास मैं आऊँ कैसे।।
मेरे अंदर भी मचलता है समंदर लेकिन।
तेरे होठों की अभी प्यास बुझाऊँ कैसे।।
वक़्त ने डाल दी ज़ंजीर मेरे पैरों में।
दौड़कर तुझको गले यार लगाऊँ कैसे।।
ज़ह्र आलूदा मेरे हाथ हुए हैं हमदम।
प्यार का जाम अभी तुझको पिलाऊँ कैसे।।
वक़्त कम और मेरे सामने तवील सफ़र।
तेरी जुल्फ़ों में हसीं शाम बिताऊँ कैसे।।
सामने रहती है महबूब की सूरत मेरे ।
या ख़ुदा सजदे में सर अपना झुकाऊँ कैसे।।
ख़त लिखे थे जो कभी तुमने मुहब्बत में “अनीस”।
प्यार का दरिया बहे उनमें जलाऊँ कैसे।।
– अनीस शाह “अनीस”