” हाथ अपने है बँधे से “
गीत
हाथ अपने हैं बँधे से ,
मौसमों के हाथ है !
धूप है कभी छाँव मिलती ,
रोज की ही बात है !!
राह है तो चाह समझो ,
लक्ष्य पर हम जुट गए !
पल हुए जो साथ अपने ,
उन पलों पर लुट गए !
है सुख यहाँ जैसे अतिथि ,
बस गमों की घात है !!
रोज परिवर्तन यहाँ है ,
नियति का यह रूप है !
जिंदगी हमको लुभाये ,
लगती यह अनूप है !
कीच है पाया कभी तो ,
पा गये जलजात हैं !!
ख़ुशी का इजहार है तो ,
दर्द भी करते बयाँ !
चाहते बस सब रहे हैं ,
मिले अपना आशियाँ !
समय चालें चल रहा है ,
मिले अकसर मात है !!
जो मिला हमने सहेजा ,
मुस्कराते बस रहे !
स्वप्न पूरे हैं कभी तो ,
हैं कभी पल में ढहे !
आज कल की कौन जाने ,
बदलते हालात हैं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )