हाथों में क़लम
हाथों में क़लम लब पे मुहब्बत का फ़साना।
तुलसी के घराने से हूँ कविता है ख़ज़ाना।।
लिखता हूँ, ये बस शारदे मइया की कृपा है।
मुझको ‘असीम’ प्यार से कहता है ज़माना।।
✍️ शैलेन्द्र ‘असीम’
हाथों में क़लम लब पे मुहब्बत का फ़साना।
तुलसी के घराने से हूँ कविता है ख़ज़ाना।।
लिखता हूँ, ये बस शारदे मइया की कृपा है।
मुझको ‘असीम’ प्यार से कहता है ज़माना।।
✍️ शैलेन्द्र ‘असीम’