हाट (बाजार)
भारत देश की सच्ची आत्मा गाँवो में बसती है । शहर में जिसे बाजार कहा जाता है, गाँव मे उसे हाट कहा जाता है । यह हाट प्रत्येक गांव में नही लगती है बल्कि एक ऐसे गाँव मे लगती है, जो समीपस्थ गाँवो में बड़ा हो तथा वहाँ आवागमन सुलभ हो । हाट रोज रोज नही लगती है, यह सप्ताह में एक बार लगती है तथा इसका एक दिन नियत रहता है, फिर उसी दिन यह हाट बरसो से लगती चली आती है । हाट में जाने का उत्साह हर वर्ग के लोगो मे होता है, चाहे बच्चे हो, बड़े हो, बूढ़े हो या महिलाएँ हो । ग्रामीण जन सप्ताह भर का राशन सामग्री हाट से लेकर रख लेते है । हाट वाले दिन मजदूर लोग अपनी छुट्टी रखते है तथा मालिक से सप्ताह भर की मजदूरी इसी दिन प्राप्त करते है । वैसे प्रत्येक हाट समान रहती है किंतु त्योहारो और विवाह के सीजन में भीड़ बड़ जाती है । आसपास के गांव जो 3 किलोमीटर से 5 किलोमीटर दूर है, वहां के ग्रामीण भी हाट में आते है । हाट में किराना, कपड़े, बर्तन, जनरल स्टोर्स, फल, सब्जी, बुक स्टोर्स, जूते की दुकानें, मसालों की दुकान, मिठाई की दुकान, सोनी की दुकान, अनाज खरीदने वाले, आदि दुकाने लगती थी । यहाँ के दुकान वालो से एक आत्मीय सम्बन्ध प्रत्येक ग्रामवासी का बन जाता है, क्योंकि वह दुकान बरसो से एक ही स्थान पर लगती चली आती है । बच्चे बड़े खुश रहते है, उन्हें हाट के दिन मिठाई खाने को मिलती है । हाट में आने वाला प्रत्येक जन शाम को लौटते समय अपने बच्चों के लिए सेव और मीठा जरूर ले जाता है । हाट वाले दिन स्कूल भी आधे दिन लगता है , जिससे पढ़ने वाले वच्चे अपनी जरूरत की किताब कॉपी खरीद सके । त्योहारों में दीपावली का त्यौहार सबसे बड़ा माना जाता है, इस त्यौहार में सबसे ज्यादा खरीददारी होती है । दीपावली की हाट बहुत बड़ी होती है, बड़े लंबे क्षेत्र में लगती है । इसमें सभी उम्र के लोग आते है और अपनी अपनी जरूरत की चीजे खरीदते है । ग्रामीण जन अपने जानवरो को सजाने के लिए सामान खरीदता है , वही बच्चे पटाखे और देवी देवताओं के पोस्टर खरीदते है । महिलाए बर्तन कपड़े आदि सामान खरीदती है । बाजार जो शहरो में होता है, वहाँ उतनी आत्मीयता नही रहती है जितनी गाँव की हाट में रहती है । हाट के दिन सभी लोग एक दूसरे से मिलकर आपस मे सुख दुःख की बाते एक दूसरे से साझा करते है । किन्तु धीरे धीरे समय बदलता गया और हाट का स्वरूप भी बदलता गया । अब पहले जैसा उत्साह और आत्मीयता नही बची । लोगो की सहन शक्ति कम हो गई, अब बात बात पर लड़ाई झगड़े पर उतारू हो जाते है । आवागमन के साधन सहज सुलभ होने से लोग हाट न जाकर शहर के बाजारों की तरफ जाने लगे । अब न वह गाँव बचे और न ही वह आत्मीय जन । हाट का रूप भी बदल गया किन्तु बरसो से आ रहे कुछ दुकान वाले आज भी उसी आत्मीयता के साथ दिखाई देते है, हा थोड़ी सी मायूसी उनके चेहरे पर आज भी मुझे दिखाई देती है ।।।
।।।जेपीएल ।।।