*हाजिरी ऑनलाइन हो गई (कहानी)*
हाजिरी ऑनलाइन हो गई (कहानी)
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कई दिन के बाद दफ्तर गया था। देखा तो सहकर्मी नारेबाजी में व्यस्त थे । “तानाशाही नहीं चलेगी – मनमानी नहीं चलेगी – हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है” आदि गगनभेदी नारों से पूरा दफ्तर गूँज रहा था ।
सुबह के साढ़े दस बजे थे । कोई अपनी कुर्सी पर काम लेकर नहीं बैठा था । जबकि दस बजे दफ्तर का समय शुरू हो जाता है । मैं भी सब के पास जाकर खड़ा हो गया ।
“क्यों भाई ! किस बात के नारे लग रहे हैं ?”- मैंने अपने निकट खड़े सुरेश से पूछा। नेतागिरी के मामले में वह सबसे आगे रहता है ।
“भाई साहब ! सरकार ने बायोमेट्रिक हाजिरी को ऑनलाइन कर दिया है । अब हम तो इसी काम के होकर रह जाएँगे ।”
पल भर में माजरा समझ में आ गया। हमारे दफ्तर में बायोमेट्रिक हाजिरी की मशीन लगे हुए वैसे तो तीन-चार साल हो गए हैं लेकिन अभी तक किसी को उससे कोई परेशानी नहीं हुई । बायोमेट्रिक मशीन आराम से धूल खाती रहती है और दफ्तर में पुरानी पद्धति से रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने का काम जब चाहे निपटा दो । कोई पूछने वाला नहीं है ।
मैं इससे पहले कि अपने विचारों को कुछ और गहराई में प्रवेश कराता ,तभी सुरेश ने सभी सहकर्मियों के सामने विषय के वास्तविक नुकीलेपन को उद्घाटित कर दिया ।
“ऑनलाइन बायोमैट्रिक अटेंडेंस में कोई चालाकी नहीं चल पाएगी । जो दस बजे तक आएगा ,उसकी ऑनलाइन हाजरी केंद्रीय सिस्टम में दर्ज हो जाएगी और जो दस बजकर एक मिनट पर आएगा उसकी गैर हाजरी ऑनलाइन सिस्टम में लिख जाएगी। हमें बंधुआ मजदूरों की तरह नौ बजकर पैंतालीस मिनट पर दफ्तर आने के लिए मजबूर किया जा रहा है । अगर हम घंटा – आध घंटा लेट आ भी जाते हैं तो उसमें कोई आसमान तो नहीं टूट पड़ रहा है ? हम अपना काम तो पूरा निपटा कर ही जाते हैं ?”
सभी सहकर्मियों ने सुरेश के कथन से हां में हां मिलाई । एक बार फिर नारा लगा “हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है — तानाशाही नहीं सहेंगे ।”
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं यूनियन का साथ दूं अथवा एक कोने में जाकर चुपचाप खड़ा हो जाऊँ? यह लोग समझाने से तो मानने वाले हैं नहीं।
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451