हाकिम भऽ गेलाह
हाकिम भऽ गेलाह
किएक चिन्हता आब कका
ओ तँ हाकिम भऽ गेलाह
अबैत रहैत छथि कहियो कऽ गाम
मुदा अपने लोकसॅं अनचिन्हार भऽ गेलाह
जुनि पूछू यौ बाबू हाकिम होइते
ओ की सभ केलाह
बूढ़ माए-बापेकेँ छोड़ि कऽ असगर
अपने शहरी बाबू भऽ गेलाह
आस लगेने माए हुनकर गाम आबि
बौआ करताह कनेक टहल-टिकोरा
नै पड़ैत छनि माए-बाप कहियो मोन
मुदा खाइमे मगन छथि पनीरक पकौड़ा
झर-झर बहए माएक आँखिसॅं नोर
किएक नै अबै छथि हमर बौआ गाम
मरि जाएब तँ आबिए कऽ की करबहक
हाकिम होइते किएक भेलह तोँ एहेन कठोर
ई सुनतहि भेल मोन प्रसन्न
जे अबैत छथि कका गाम
भेंट होइते कहलियनि कका यौ प्रणाम
नै चिन्हलिअ तोरा बाजह अपन नाम
आँखि आनहर भेल कि देखैत छिऐ कम
एना किएक बजैत छह बाजह कनेक तूँ कम
आइ कनेक बेसिए बाजब हम
अहूँ तँ होएब बूढ़ औरदा अछि कनेक कम
कि थिक उचित की थिक अनुचित
मोनमे कनेक अहाँ विचार करू
किशन करत एतबाक नेहोरा
जिबैत जिनगी माए-बापक सतकार करू
नै तँ टुकुर-टुकुर ताकब असगर
अहींक धीया पुता अहाँकेँ देखि परेता
बरू जल्दी मरि जाए ई बुढ़बा
मोने-मोन ओ एतबाक कहता?
कवि©किशन कारीगर
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