हाकलि / मानव छंद (माँ )
हाकलि /मानव
14 मात्राएँ अंत में गुरू ।
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हाकलि
3 चौकल अनिवार्य
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माँ
रोज परेशानी होती।
सहती माँ न कभी रोती।
हर संभव हिम्मत देती ।
हमसे कुछ न कभी लेती ।
काम सभी के करती है।
संकट सबके हरती है ।
सारे जग से न्यारी माँ ।
मेरी प्यारी प्यारी माँ।
मानव
3 चौकल न हों
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माँ
तेरे उपकार बड़े हैं ।
जीवन के नियम कड़े हैं।
पाकर आशीष तुम्हारा
हम जिंदा यहाँ खड़े हैं।
ऋण तेरा चुका न पायें।
कितना भी जोर लगायें।
यह बात ज्ञान से सीखी ।
माँ तू भगवान सरीखी।
माँ के उपकार अनेकों।
सब कहाँ कहाँ तक लेखों।
माँ के जैसी बस माँ है ।
माँ की न कहीं उपमा है ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
16/5/23