हाकलि छंद ( परशुराम संवाद समापन)
परशुराम संवाद
( समापन)
हाकलि 14 मात्राएँ
तीन चौकल के बाद एक गुरू
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परशुराम
यह धनु मेरा लो कर में।
चाहे चिंता या डर में।
बल दिखला डोरी खींचो।
बातन विरवा मत सींचो।।
निर्णय पूरा हो जाये।
यश गौरव दुनिया गाये।
शक की पकड़े है संसी ।
माने सच्चे रघुवंशी।
मानव 14 मात्राएँ
जहाँ तीन चौकल सीधे न बनें
अंत में गुरू
यह रीति नीति सबकी है ।
हम समझ रहे कब की है ।
मत शीतलता दिखलाओ ।
मेरा यह चाप चढ़ाओ ।
बिन दिये धनुष खुद आया।
क्षण भर में राम चढ़ाया ।
तज कर आँखों के शोले ।
मुनि जय हो जय हो बोले ।।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
29/10/22