हाइपरटेंशन(ज़िंदगी चवन्नी)
शिखर सिंह खानदानी बड़े आदमी खानदानी रईस बाप दादो को शान शौकत रुतबा उनके परिवार में कोई किसी नौकरी में नही जाता ।
उनके यहां ही सैकड़ो कारिंदे काम करते शिखर सिंह बड़े ही विनम्र एव मिलनसार व्यक्ति थे पिता फुलवदन सिंह के लाख समझाने अनुरोध भय शाम दाम दण्ड की जुगत के बाद भी शिखर सिंह ने पारिवारिक परंपरा को तोड़ते हुए मध्यम दर्जे कि नौकरी की जिससे परिजन कभी भी खुश नही रहे।
शिखर सिंह अपने पत्नी बच्चों को जहां नियुक्ति रहती वहीं साथ रखते खुशहाल परिवार कोई कमी नही ।
शिखर सिंह जब भी अपनी ड्यूटी पर जाते लौटते समय रास्ते मे बिहार का एक बूढ़ा व्यक्ति उनके घर से कुछ दूर पहले सड़क पर सुर्ती बेचता उसके पास अवश्य रुकते और चवन्नी कि सुर्ती खरीदते पैसा नगद एव तुरंत भुगतान कर देते कभी कभार चिल्लर के अभाव या किसी अन्य कारण से भले ही पैसा बकाया रह गया हो।
चूंकि शिखर सिंह बिहार के ही थे और वह बूढ़ा सड़क किनारे सुर्ती बेचने वाला भी बिहार का ही था अतः शिखर सिंह आते जाते बूढ़े सुर्ती वाले सुर्ती खरीदते प्रतिदिन उसके परिवार का हाल चाल अवश्य लेते रहते ।
उस बूढ़े सुर्ती बेचने वाले को सिर्फ यही संतोष था कि उसका सम्बंध उसके जवार के सबसे बड़े आदमी से है ।
अतः वह लगभग प्रति दिन शिखर सिंह का लौटने का इंतज़ार करता ऐसे ही दिन बीतते रहे सड़क के किनारे अन्य सुर्ती विक्रेताओं को उस बूढ़े संता सुर्ती विक्रेता से जलन भी इस बात कि रहती की शिखर सिंह उनके यहां से सुर्ती नही खरीदते है ।
एक दिन शाम को सात आठ के मध्य शिखर सिंह अपनी डयूटी से लौटे संता बूढ़ा इंतजार ही कर रहा था शिखर सिंह के पहुचने से पहले ही संता ने शिखर सिंह के पसंद कि सुर्ती काट कर रखी थी शिखर सिंह के आते ही संता ने कटी सुर्ती शिखर सिंह के हाथ मे पकड़ाते हुये कहा साहब आपके मनपसंद सुर्ती समस्तीपुर वाली है शिखर सिंह ने सुर्ती हाथ मे लिया और बोले दु दिन के पईसा जोड़ी के बताव हिसाब दे देई संता ने दो दिन का हिसाब बताया दो रुपये।
शिखर सिंह ने कहा पौने दो रुपये संता ने कहा साहब चवन्नी की खातिर हम काहे झूठ बोलब संता और शिखर सिंह में पहले मोहब्बत में झिक झिक हंसी ठिठोली होती रही जाने अंत मे संता बूढ़ा बोला जाए देई महराज आप जौँन चाही तवने दे देई बड़े आदमी लोग गलत कहा बोलेले गलत त गरीब बोलेला ऊहो चवन्नी खातिर।
संता कि इतनी बात सुनते ही शिखर सिंह का क्रोध सातवे आसमान पर आव ना देखा ताव उन्होंने संता कि कैंची जिससे वह सुर्ती काटता था को हाथ मे उठा लिया संता बोला ऊ कैंचियां आपके का विगाड़े बा शिखर सिंह और क्रोध में तमतमाते हुये बोले ते हमसे जबान लड़ावत हवे तोर इतनी औकात बूढ़ा संता शिखर सिंह का क्रोध देखकर गिड़गिड़ाते हुये बोला साहब आप कुछो ना देई शिखर सिंह का पारा और चौथे आसमान पर बोले हमे खैरात देत है ।
शोर शराबा सुनकर आस पास के लोग एकत्र हो गए सब सिर्फ शिखर सिंह के क्रोध को ही देख रहे थे किसी कि हिम्मत नही थी कि उनसे कोई कुछ भी बोल सके बीच बीच मे संता के व्यवसायिक प्रतिद्वंदी और शिखर एव संता के रिश्ते को देख कर जलने वाले शिखर के क्रोध अग्नि में घी डालने का काम कर रहे थे शिखर सिंह इतना क्रोधित हो गए कि स्वंय पर काबू ना रख सके और हाथ मे ली कैंची संता के पेट मे घुसेड़ दिया और पेट ही फाड़ दिया बेचारा संता ने फड़फड़ाते दम दोड़ दिया सभी तमाशबीन खड़े खड़े तमाशा देखते रहे।
वह दौर मोबाइल और वीडियो का नही था नही तो आज लोग उस घटना का वीडियो वायरल करा रहे होते खैर शिखर सिंह अपने रसूख एव ताकत के बल पर छूट गए लेकिन कहावत मशहुर हो गयी बड़े आदमी कि दोस्ती चवन्नी कि जिंदगी।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीतांबर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।