हाइकू
1
घास रोदन
अंकुरण दुबारा
है जिजीविषा ।
2
ताकते मोर
आच्छादित गगन
कब वर्षा हो।
3
बनाता घर
मिट्टी द्वारा अबोध
एक सृजन।
4
उन्हें ताकता
ठेला खींचता बच्चा
जो हैं कारों मैं ।
5
ये फुटपाथ
मेरा आश्रय स्थल
कहे अनाथ।
6
एक टांग से
बगुले की प्रतीक्षा
तप ही तो है।
7
उठता धुआँ
उजड़े घर कहें
आतंक कथा।
8
माता-पिता का
मात्र छणिक स्वार्थ
जन्मता बच्चे।
9
शक्ल का तेरी
सच्चा हूँ प्रतिबिम्ब
कहे दर्पण।
11
कहें कहानी
उजड़े आशियां की
ये खण्डहर।
11
झूठे दोनों की
प्रतीक्षा में ताकते
भिखारी बच्चे।
12
नव-पल्लव
पूछे जन्म का राज
एक जिज्ञासा।
13
हो आशियाना
कारीगर का कभी
रहा सपना |
14
स्वदेश में भी
बन कर विदेशी
हम रहते।
15
कसने से ही
देता है स्वर मीठे
वीणा का तार।
16
पर-सुख से
दु:खी आज मानव
न स्व दु:ख से।
17
किससे कहूँ
दर्द मेहनत का
मज़दूर हूँ।
18
पानी पर ही
बरसे खूब पानी
देख नादानी ?
19
पेट हेतु भी
होना पड़ा पेट से
धिक् रे जीवन !
20
लेखन देख
कांपता पेड़, सोचे
अब कटूंगा ।
21
दे कर दर्द
बांटते मरहम
छद्म मसीहा |
22
मत उलीचो
बाल्टियों से अंधेरा
दीप जलाओ ।
23
मेरी है मेरी
लड़े बचपन में
अब, माँ तेरी ।
24
कर देख लो
गुड़ चींटी का मेल
आज की दोस्ती |
25
नभ को ताक
अकाल में बरसा
मन मेघ सा ।
26
खींच लकीरें
धरा पर स्वार्थ की
बनाते देश ।
27
बरसे मेघ
जो घन-घना कर
मचला मन।
28
जो तू चाहता
आवागमन मुक्ति
निज को जान ।
29
उड़ गगन
जब जितना चाहे
ना भूल जमीं ।
30
रह के साथ
जगत भीड़ में भी
हम अकेले ।