हाइकु
मेरा भी मन
घरौंदा हो अपना,
अपनों संग।
घरौंदा बने
हरेक का सपना,
काश!पूरा हो।
बच्चें भी चाहें
छोटा ही सही पर,
अपना तो हो।
पेट न भरे
घरौंदा बने कैसे?
सपना भर।
बाढ़ आकर
सपनों का घरौंदा ,
उजाड़ गई।
उम्मीद कहाँ
अपने भी छत का,
किरायदार।
सपना घर
बना रहें हैं रोज,
इसी में खुश।
बिखर रहा
आशियाना सबका,
महँगाई है।
✍ सुधीर श्रीवास्तव