हाइकु
“करवाचौथ”
(1)मैं सुहागन
पलटती करवा
लाल जोड़े में।
(2)करवाचौथ
सात जन्मों का रिश्ता
मन विश्वास।
(3)हाथ करवा
चंद्रमा की प्रतीक्षा
पिया का साथ।
(4)लाल बिंदिया
माँग भरा सिंदूर
पूजूँ करवा।
(4)चौथ का चाँद
सुहागनें पूजतीं
अर्घ्य देकर।
(5)चाँद सी गोरी
सितारों की चुनरी
पूजे करवा।
(6)प्रीत अटल
पति पिलाए जल
व्रत सफल।
(7)दूधिया चाँद
महक रही प्रीत
गोरी शर्माए।
(8)चाँद की पूजा
जन्म-जन्म का साथ
सच्ची प्रीत का।
(9)करवाचौथ
सुहागनों का व्रत
चाँद प्रतीक्षा।
(10)पावन पर्व
सजती सुहागन
देखता चाँद।
(11)चौथ का चाँद
बदली में छिपा है
ढूँढो साजन।
(12)चाँद निहारूँ
छलनी से अपनी
प्रीतम साथ।
(13)देना आशीष
सदा सुहागन का
करूँ अर्चना।
(14)चौथ का चाँद
सुहागन दे अर्घ्य
मन में आस्था।
(15)सुर्ख हथेली
चंदा का मुख देखूँ
प्रीत सजाए।
डॉ. रजनी अग्रवाल”वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी।
संपादिका-साहित्य धरोहर।