हाइकु
गुलमोहर
सम्मुख बेअसर
ताप प्रखर ।
माटी की बात
खोलने लगी माटी
अंतः जज्बात ।
माँ की ममता
प्रेम घट छलका
जग महका ।
चिड़िया आई
दाने की लालच रे~
वो फँस गई ।
बेटी विदाई
रोक सका न बाप
निज रुलाई ।
वेदना छाई
पीड़ा की परछाई
प्रीत निभाई ।
मौन की भाषा
संवादों पर भारी
कलम हारी ।
नारी पीड़ित
भावभीनी कलम
अश्रु पूरित ।
आँगन खुश
चहकेगी गोरैया
रखें सकोरा ।
देख सकोरा
लौट आई वापस
खुश गोरैया ।
नीड़ बनाने
निकली है गोरैया
रोटी कमाने ।
□ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
साँकरा, रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
मो.नं. 7828104111