हाइकु
लता जी
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स्वरकोकिला
मां सरस्वती पुत्री
कंठ भारती।
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संघर्ष भरा
जीवन था जिसका
निखरा सोना।
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हार न मानी
हृदयनाथ लाड़ली
सुरों की रानी
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तुम्हारा जाना
अविश्वसनीय है
पर यथार्थ।
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तुम्हारा शरीर
विलीन पंचतत्व में
तुम जंग में।
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नमन लता
जग में है समाया
आभामंडल
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सदियों तक
तुम अमर रहोगी
भूलेगा कौन।
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कोकिलकंठ
तुम्हारी पहचान
लता है नाम।
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हर दिल में
रचा बसा संगीत
तुम्हारा गीत।
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सूनापन दे
छोड़ गई हमको
भुलोगी नहीं।
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सुर खामोश
वाद्य हैं सूने से
बैचैन फि़जा।
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सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा,उ.प्र.
८११५२८५९२१
© मौलिक, स्वरचित
१०.०२.२०२२