हाइकु -१ | मोहित नेगी मुंतज़िर
बेपरवाह है
फिरता दर दर
रमता जोगी।
चलते जाओ
यही तो है जीवन
नदिया बोली
जनता से ही
करता है सिस्टम
आंखमिचोली।
घूमो जाकर
किसी ठेठ गांव में
भारत ढूँढ़ो।
लक्ष्य है पाना
तुम एक बनाओ
दिन रात को।
कुछ कर लो
सौभाग्य से है मिला
मानव तन ।