हाइकु–मन तांडव
मन तांडव।
तन कुरुक्षेत्र हो।
प्रण टूटे ना।
व्रत कुंडों में।
मथें उदधि मन।
स्वारथ स्वाहा।
अश्वमेध है।
रक्षण या उगाही।
दम्भ का यज्ञ।
अहंकार है।
होगा ही भूलुंठित।
आ,गा,बजा लें।
नर ही ग्रंथ।
नारायण भी यही।
इसे ही पूजें।
यज्ञ कि वेदी।
दक्षिणा का झगड़ा।
अग्नि ही स्वाहा।
रास्ते का धूल।
पैरों को सहलाता।
अत: दलित।
चढ़े माथे तो।
दलित सम्मिलित।
बगीचे का फूल।
दिया ही नहीं।
कुचलने का हक।
दलित रहा।
युद्ध बपौती।
बेशरम कहीं के।
हारकर भी।
योद्धा नहीं है।
है युद्ध में हत्यारा।
खुद का हारा।
बहुत पढ़ा।
भाषणों की शृंखला।
दलित-हित।
अपना त्यागे।
दलित-सोच वाले।
सुख महान।
हर युग में।
हथियार मना है।
एकलव्य को।
युद्ध बंद है।
बेचैन है बहुत।
रक्त का स्वाद।
मन में भरा।
क्रूरता सा वारिस।
शांति शर्मिंदा।
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