हाइकु-पापा की परी
हाइकु
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पापा की परी
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पापा की परी
आसमां में उड़ती
खुश रहती।
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बड़े निराले
मेरे प्यारे से पापा
जान लुटाते।
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मुझे बुलाते
घर आते पहले
लिपट जाती।
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पापा की जान
पापा का स्वाभिमान
मैं ही उनकी
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जब गुस्साते
सहम सी जाती मैं
बाँहों में लेते।
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■ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा(उ.प्र.)
8115285921
©मौलिक, स्वरचित