हाइकु–असहज
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प्रश्न से दूर।
असहज हाइकु।
मनुष्य भी है।
चाँदनी ही क्यों?
असहज हाइकु।
तपता मन!
सबके लिए।
असहज हाइकु।
खोलो बदन।
है रेगिस्तान।
फैलता,सिकुड़ता।
नि:शब्द दर्द।
कितना दु:ख!
असहज हाइकु।
साहस वहे!
कुछ उलीचो।
असहज हाइकु।
सामान्य बातें।
सत्ता की कुर्सी।
कुरुक्षेत्र रचूँगा।
टूटी ही सही।
हारता नहीं।
रश्मिरथी कौन्तेय।
जाता हराया।
परशुराम।
है सामंतवादिता।
बदला नहीं।
रावण को तो।
अहंकार भी शौर्य।
नग्न था मन।
राम का रण।
है किसे समर्पित।
आर्य,अनार्य?
मौका,प्रयोग।
भीषण विभीषण ।
सम्राट मन ।
जै हनुमान !
कहो, सचमुच ही!
युद्ध वाहक।
तुलसी-कथा।
स्त्रीत्व रक्षण अल्प।
राम का प्रण।
राक्षस कौन?
रहा सभ्य समाज।
सर्वदा मौन।
रावण को था।
सभ्य करने की ना ।
स्वर्ण की लिप्सा?
कैकसी-पुत्र।
न्याय की खोज में ही ।
विद्रोही बना?
अन्याय हँसे ।
वर्तमान गवाह।
जातियां देख।
योगी का योग।
भस्म करता दिखा ।
रोगी से रोग।
रामायण में।
सामाजिक सत्य है।
या सत्ता,नारा।
काकभुशुंडि।
वाल्मीकि,गरुड या।
खुद ही कथा।
वाल्मीकि ने ही ।
उजागर है किया।
स्त्री की दुर्दशा ।
लंका नि:शंक।
आजतक रहस्य ।
भटका रहा।
इतिहास अवाक ।
भागता है ‘आज’ से ।
पीढ़ी से पीढ़ी।
जाति की प्रथा।
रामायण ने रखा।
निषाद राज।
सामंती राम।
सामंत का न अंत।
पैरो में गुह।
अवतार बताया।
धर्म है धुरंधर।
शिशु का जन्म ।
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