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6 Aug 2021 · 2 min read

हां ! हमें दुनियादारी नहीं आती ।

इस दुनियादारी से अब तक अंजान रहे हम ,
समझ न सके इसकी रवायत कभी भी हम।

गधे को गधा नहीं कहना ,उसे बाप समझो ,
कहना भी पड़ेगा अगर निकलवाना है काम।

दिल में नफरत और गुस्सा भरा हो बेशक ,
मगर करना ही पड़ेगा प्यार भरा सलाम ।

दिखावे का ही जमाना है आज कल जनाब !
हकीकत का तो कहीं भी रह न गया नाम ।

किसी के प्यार को अगर हम हकीकत समझे ,
जिंदगी में तो सदा धोखा ही खायेंगे न हम ।

दो पल के प्यार में बेशुमार खुदगर्जी शामिल है,
मतलब निकल गया तो ” भई कौन हो तुम ?”

आज तोहफे दिए जा रहे हैं इसे तिजारत समझो,
ये देना लेना आज के रिश्तों में होता है सरे आम।

आज कल रिश्तों की अहमियत ही क्या रह गई ?
इनको दिल से निभाने के लिए वक्त रह गया कम।

मिल बैठकर अपना हाल ए दिल बांटने वाले यार ,
अब न रहे जिन्हे कहते थे हमराज और हमदम।

अब जो कहना चाहेगा भी अपने दिल का हाल ,
उसे नमक मिर्च लगाकर बना देंगे चर्चा ए आम ।

किसी की मैय्यत पर अफसोस करने जा रहे वो ,
गुफ्तगू करने में मशगूल है नहीं कोई रंजो गम ।

इंसान तो इंसान ,खुदा के साथ भी करें तिजारत,
अपनी ढेरों मन्नतों के बदले सौदा करती आवाम ।

हमारी तबियत और फितरत रही खुली किताब सी,
हमें नहीं आया फरेब उम्र यूं ही गुजर गई तमाम।

रफीक कहते रहे ये फन दुनियादारी का तुम सीखो,
नामुमकिन है क्या जमीर की सुनना बंद कर दें हम ?

उम्र भर ज़मीर की सुनते आए है आगे भी सुनते रहेंगे,
भले ही “अनु” डगर कांटो की हो ,इसी पर चलेंगे हम।

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Books from ओनिका सेतिया 'अनु '
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