हां मैं गांधी हूं, मैं मरा नहीं हूं…
मेरी कलम से…
हां मैं गांधी हूं,
वही गांधी, जिसने तुम्हें,
आजादी दिलाई थी,
अंग्रेजों से
फिर भी,
मार दिया गया मैं,
अपने ही देश में, अपनों से।
मारो, कितनी बार मारोगे
अभी मैं मरा नहीं हूं,
जिन्दा हूं,
हां, अभी मैं जिन्दा हूं,
यकीन करो, मैं जिन्दा हूं।
मारना चाहते हो मुझे,
तो ठीक से मारों,
ऐसी छोटी मौत से,
कहां मरने वाला मैं।
जब नाथू राम गोडसे की,
गोली से नहीं मरा मैं,
तो ऐसे कैसे मरूंगा ।
मेरा ही पुतला बनाकर,
मुझे मार रहे हो,
भला ऐसे भी कोई,
मरता है क्या।
लगता है तुमने,
इतिहास नहीं पढ़ा,
अरे, मैं तो अभी,
मात्र 149 साल का जीवित गांधी हूं।
रावण तो हजारों साल का होकर भी,
अभी तक नहीं मरा,
तो भला, मैं कैसे मर पाऊंगा।
मुझे मारना चाहते हो तो,
2 अक्टूबर और 30 जनवरी की,
तारीख भुला दो,
मुझे मारना चाहते हो तो,
गूगल और किताब के पन्नों से,
मेरा इतिहास मिटा दो,
सच कह रहा हूं,
अगर मुझे मारना चाहते हो तो,
राजघाट से मेरे अस्तित्व को,
जमींदोज कर दो,
संसद, विधानसभा
और अपने ही घरों में टंगे
मेरे तस्वीरों को हटवा दो,
सच कह रहा हूं,
मुझे मारना चाहते हो तो,
महात्मा गांधी मार्ग,
का नाम बदल दो,
भारत की मुद्रा से,
मेरी फोटो हटवा दो,
अपने दादा-दादी की कहानियों
को भुला दो,
मुझे मारना चाहते हो तो,
मेरे नाम पर, चलने वाली,
हर योजनाओं को बंद कर दो,
मेरे समय के इतिहास के,
अन्य पुरूषों के साथ,
जुड़े मेरे संस्मरण के पन्नों को,
फाड़ दो।
सच कह रहा हूं,
मुझे मारना चाहते हो तो,
विदेशों में जाकर,
मेरे जीवन के हर सत्य को,
मिटा दो।
मुझे मारना चाहते हो तो,
भारत के लोकतंत्र के,
शिखर पुरुषों का,
मेरे सामने नतमस्तक रुकवा दो।
और फिर भी अगर,
मैं ना मर पाऊं तो,
अपने दिलों दिमाग में,
गांधी नाम व विचार,
रूपी तरंगों को,
हमेशा-हमेशा के लिए,
भूला दो।