हां नारी हूँ
” मैं चपला सी तेज युक्त
नभ तक धाक जमाऊँ
आ सूरज, तेरी किरणों से
अपना भाल सजाऊँ
कभी धरा- गांभीर्य ओढकर
मौन का काव्य सुनाऊँ
तितली से लेकर चंचलता
फूलों से रंग चुराऊँ
सरिता सी कल-कल बहती
बाधा से रुक ना पाऊँ
मैं स्वयं भोर की उजली
दुःख तम से क्या घबराऊँ
हाँ नारी हूँ , मैं कोमल मन
पर अबला नहीं कहाऊँ….””
**अंकिता**