हां और ना के बीच
हां और ना के बीच
अक्सर उलझ जाती हूं
जब भी हो निर्णायक घड़ी
बात कोई हो ज़िद पर अड़ी
इधर चलूं या जाऊं उधर
इसको पकडूं या छोड़ूं उसे
हर बार फंस जाती हूं…
सब ऐसा ही हैं करते
यही रास्ता तो हैं पकड़ते
ये सोच हां के साथ
चलने का मन मनाती हूं
लेकिन क्यों हैं ऐसा करते
क्या जग से हैं वो डरते
ये सोच ना की ओर
फिर से मुड़ जाती हूं ….
हां और ना के बीच का
अंतर पाटना
क्यों होता है इतना कठिन
हमेशा सोच में पड़ जाती हूं ….