हाँ ! सक्षम हूँ
हाँ ! सक्षम हूँ तब से अब तक,
महाप्रलय के आ-जाने तक ।
अथक परिश्रम करती देखो,
शिशु भारत के परिपोषण को,
नित जीती नित मरती देखो,
मैं अपना ख़ुद संबल बनती,
प्रत्यक्ष आँधी पर्वत सा तनती ।
मौसम तन-मन संग बदलते,
स्वेद-सूर्य नभ-भाल निकलते ।
सुबह-शाम कई चेहरे पढ़ती,
पढ़-पढ़ संस्कार कुछ गढ़ती ।
मैं ख़ुद में इतिहास सुनो तुम,
रणभूमि से दरबारों तक का,
होता जो परिहास सुनो तुम ।