हाँ, यह सपना मैं
हाँ, यह सपना मैं,
साकार होते देखना चाहता हूँ ,
अपने जीते भी किसी भी तरह,
अपनी आँखों के सामने अपनी आँखों से।
इसीलिए बदलता रहता हूँ करवटें रातभर,
सो नहीं पाता हूँ मैं रातभर,
जबकि सारी दुनिया सो रही होती है,
और मैं बन्द आँखों से देखता रहता हूँ ,
यह सपना रातभर।
तड़पता रहता हूँ इसको पाने के लिए,
और कभी तो बढ़ जाता है मेरा रक्तदाब भी,
हाँ, जुनून सवार है मुझमें यह पाने के लिए,
उनके सिर को मेरे कदमों में झुकते देखने का,
जिन्होंने मुझको कमत्तर समझकर,
कभी किया था मेरा अपमान।
मुझको पूरा विश्वास है,
मेरी तपस्या और त्याग पर,
और तैयार हूँ इसके लिए कुछ भी छोड़ने को,
मसलन अपनों से रिश्तें,
यारों से यारी और मोहब्बत,
क्योंकि मैं नक्षत्र बनकर,
चमकना चाहता हूँ आकाश में।
और देख रहा हूँ यह ऊपरवाला भी,
कि मैं क्या कर रहा हूँ ,
माफी चाहता उससे मैं,
वह मेरी मजबूरी भी समझें,
और जिंदगी में यही है मेरा सपना,
जिसके लिए कर रहा हूँ मैं इतनी मेहनत।
हाँ,यह सपना मैं————————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)