हाँ, मैं विद्रोही हूँ!!
हाँ,माना मेरी कुछ आदत ख़राब है!!
कोई झूठ, मुझसे सही नहीं जाती
मुँह देखे की मुझसे कही नहीं जाती ।
मैं उनसे कैसे मधुर संबंध रखूँ
जिनके मुँह में मिठास, दिल में जलन होती है।
मैं जो हूँ सामने हूँ,स्पष्ट हूँ
हाँ,वो मुझे पसंद नहीं, जिनके मुँह पर नकाब है ।
है मुझको मालूम, हवाएँ ठीक नहीं हैं
मुखौटे लगाएं कुछ पक्ष में,नकाब ओढ़े ढेरो खिलाफ है।
माना हम पूर्ण नहीं,पर आप भी संपूर्ण नहीं है
शायद युग की नयी ऋचाएँ ठीक नहीं हैं।
जिसका आमुख ही क्षेपक की पैदाइश हो
वह क़िताब भी क्या कोई अच्छी क़िताब है ।
तय है ऐसी सोच से, कुछ घाटे होंगे
लेकिन ऐसे सब घाटे मुझको क़बूल हैं।
हाँ मैं विद्रोही हूँ विद्रोह करूँगा उनके खिलाफ
जिनके खाते अलग, अलग जिनका हिसाब है ।
~~~रीतेश माधव