हाँ मैं वही बसंत हूँ
हाँ मैं वही बसंत हूँ ……
जो कभी नई कोंपलो में दिखता था
कलियों में फूल बनकर खिलता था
हवाओ संग ख़ुशबू लिए फिरता था
चेहरों पे नई उंमग लिए मिलता था
मगर आज ये रूप दिखाने को तरसता हूँ
आज सिर्फ जुबानो में मिलता हूँ !!
हाँ, मै, वही बसंत हूँ जो बातो में मिलता हूँ
आजकल सिर्फ, मै, किताबो में मिलता हूँ !!
जिससे फैसले लहलाती थी
बागो में हरियाली छाती थी
तितलियाँ फूलो मंडराती थी
गुनगुनी धूप मन लुभाती थी
अब वो फ़िज़ा बिखराने को तरसता हूँ
आज सिर्फ बधाई संदेशो में मिलता हूँ !
हाँ, मै, वही बसंत हूँ जो बातो में मिलता हूँ
आजकल सिर्फ, मै, किताबो में मिलता हूँ !!
पेडों की पुरानी पत्तियाँ झड़ती थी
नई नई कोमल पत्तियां उगती थी
अमवा पे बोर मंजरिया फलती थी
कोयल की पीहू पीहू रट लगती थी
मगर अब उस आवाज को तरसता हूँ
आज सिर्फ दिखावे कही पर मिलता हूँ !
हाँ, मै, वही बसंत हूँ जो बातो में मिलता हूँ
आजकल सिर्फ, मै, किताबो में मिलता हूँ !!
बसंत ऋतू संग, फाग का आना
नर-नारियो का फाग गीत गाना
सुनहरी बालियों से खेत लहलाना
सरसो के पीले-२ फूलों का छा जाना
वो मादकता छलकाने को तरसता हूँ
पल पल वो पल जीने को मचलता हूँ
हाँ, मै, वही बसंत हूँ जो बातो में मिलता हूँ
आजकल सिर्फ, मै, किताबो में मिलता हूँ !!
डी के निवातिया