हाँ, मैं कवि हूँ
हाँ, मैं कवि हूँ,
इसलिए कि,
सोचता हूँ बहुत कुछ,
आप भी तो सोचते हैं,
आप भी तो लिखते हैं,
लेकिन मैं लिखता हूँ अपने विचार,
देश- दुनिया और समाज के बारे में,
गीत- कविता के रूप में।
हाँ, मैं कवि हूँ,
एक आजाद परिंदे की तरह,
आजाद है मेरी लेखनी,
जो देती है मुझको भी सज़ा,
न्याय जो निष्पक्ष करती है,
लिखती हैं सभी की आवाज को,
लेकिन माफ करना मुझको,
अनमोल है मेरी कलम।
हाँ, मैं कवि हूँ,
लेकिन अकेला नहीं हूँ,
एक फौज है मेरे भाईयों की,
जिनमें से कुछ जीते हैं अमीरी में,
कुछ रहते हैं मुफलिसी में,
और कुछ तो मस्त है फकीरी में,
सन्तों के वेश में बैरागी की तरह,
जटाधारी शिव की तपस्वी,
बड़ी शान से अल्हड़ और मौजी।
हाँ, मैं कवि हूँ,
हर किरदार मैं निभाता हूँ,
कुछ भगवान से बड़ा मानते हैं,
कुछ सूरज से बड़ा समझते हैं,
कुछ दीवाना कहते हैं मुझको,
कुछ पागल भी कहते हैं मुझको,
जो पसंद नहीं करते हैं मुझको,
वो श्वान कहते हैं मुझको,
क्योंकि मैं बकता हूँ
और भौंकता जो हूँ।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)