हाँ टूटा जरूर हूँ मगर बिखरा नहीं हूँ
हाँ टूटा जरूर हूँ मगर बिखरा नहीं हूँ।
थोड़ा समझ गया हूँ मगर निखरा नहीं हूँ।
दूसरों को हँसाने में भी खुशी मिलती है।
कुछ लोगों को ही ऐसी जिंदगी मिलती है।।
खुद को याद रखता हूँ जमाना भूल गया हूँ।
मुस्कुराना सीख रहा हूँ हँसाना भूल गया हूँ।।
ये हुनर होता है जीने का मसखरा नहीं हूँ।
हाँ टूटा जरूर हूँ मगर बिखरा नहीं हूँ।।
मैं खुश हूँ गर खुश है कोई मुझे छोड़कर।
जीना सीख रहा हूँ किसी से उम्मीदें छोड़कर।।
अजीब हुनर हैं अजीब किरदार जमाने में।
वो खुद को जला बैठे फ़कत मुझे जलाने में।।
छोड़ दी वो गलियाँ फिर उनसे गुजरा नहीं हूँ।
हाँ टूटा जरूर हूँ मगर बिखरा नहीं हूँ।
जिंदगी इक किताब है इसने सिखाया बहुत है।
हर पल हर लम्हा हमें आजमाया बहुत है।।
झूठे होते हैं वो लोग जो कसमें खाते हैं।
किसी से वादा करते और किसी से निभाते हैं।।
मैं अपने वादों से मगर कभी मुकरा नहीं हूँ।
हाँ टूटा जरूर हूँ मगर बिखरा नहीं हूँ।।
किसी की खुशियों से परहेज़ क्या करना।
नसीबों की तहरीर पर गुरेज क्या करना।।
तेरे कहने से नाकामयाब नहीं हो जाऊँगा।
मैं भी इक दिन मेरा नाम कमाउँगा।।
मैं इक सागर हूं कोई कतरा नहीं हूँ।
हाँ टूटा जरूर हूँ मगर बिखरा नहीं हूं।।