हाँ, क्या नहीं किया इसके लिए मैंने
हाँ, क्या नहीं किया इसके लिए मैंने,
कि जिसका हो मुझको अफसोस,
जानते हैं वो लोग भी,
कि मैं भूल गया था तब अपनों को भी,
और मुझको धुन थी रणजीत बनने की।
हाँ, क्या नहीं किया इसके लिए मैंने,
अपने पसीने से बुझाई थी मैंने,
इस जमीं की प्यास,
तब महके हैं ये फूल,
और अपने आँसुओं से जलाये थे मैंने,
ये सारे चिराग जो बुझे हुए थे।
हाँ, क्या नहीं किया इसके लिए मैंने,
लिखी थी मैंने अपने खून से शपथ,
कि अबकी बार मेरी जीत होगी,
अब सभी को हैरानी है,
यह कौनसा शौक है मेरा,
क्यों मैं भूल गया हूँ ,
अपने सारे रिश्तों को,
और मिल रहा है मुझको सुकून,
सिर्फ इन्हीं का दिल जीतकर,
किस- किससे लड़ा था मैं,
जी.आज़ाद होने के लिए।
हाँ, क्या नहीं किया इसके लिए मैंने—————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)