ह़ज़ल
?हज़ल?
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जिधर देखो उधर सूरत नई है
करामाती गजब की ये सदी है ।
नही अब वास्ता पहले के जैसा
जिसे देखो उसे अपनी पड़ी है ।
इधर बच्चे सयाने हो रहे हैं
उधर खटिया सयानों की खड़ी है ।
रहे सरकार मे लंबे समय से
उन्हे घपलों की आदत हो गई है ।
जरा देखो तो नेता सब मजे मे
मगर जनता बिचारी अधमरी है।
ये इंटरनेट की दुनिया है यारो
बढ़े रफ्तार इसकी हर घड़ी है ।
लगी है लत सभी को फेसबुक की
के आधी ज़िंदगी इसमे कटी है ।
गीतेश दुबे ” गीत “