हस्ती
क्यों मन धबराता है…… गलतियों पर अपनी क्यों नहीं…. पछताता है …… सौंप दे खुद को……..उसको तू
एक बालक की तरह……देख….. जरा….. परमात्मा खुद बाहें फैलाता हैं…… मुश्किलें आसान होंगी…..मत आँसू बहा…… वो परमपिता परमात्मा ही बिगड़े……काम बनाता है…..हस्ती तेरी कुछ भी नहीं…… मिट्टी के बूत सा तू…जब चाहे वो बनाये ……जब चाहे वो मिटाता है……. क्यों अहंकार सिर चढ़ाया अपने……
एक नज़र ताक कर वो……औकात तुझे तेरी दिखाता है।
सीमा शर्मा