हश्र का वह मंज़र
काश, दुनिया में किसी से
किसी को न प्यार होता
दिल्लगी खातिर भी कोई
किसी का न यार होता…
(१)
सोई हुई ही रहतीं
इसकी धड़कनें हमेशा
न कभी क़रार मिलता
न दिल बेकरार होता…
(२)
होनी या अनहोनी
होती कुछ भी जल्दी
तो झूठ-मूठ में मरना
क्यों बार-बार होता…
(३)
मैं अगर न देख लेता
हश्र का वह मंज़र
तो मर के भी तुम्हारा
मुझे इंतज़ार होता…
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Shekhar Chandra Mitra
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