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6 Jun 2023 · 1 min read

हवा हुए वे दिन बचपन के

हवा हुए वे दिन बचपन के

जब अजिया भाॅंती थीं माठा
अम्मा देतीं सेंक पराॅंठा
यही नाश्ता करते थे नित
और गाॅंव में थे हम अविजित
हम माहिर थे अपने फन के
हवा हुए वे दिन बचपन के

कभी जब न होता था माठा
खाते थे हम राब पराॅंठा
यदाकदा सत्तू पीकर हम
करते थे खलिहानों में श्रम
हम मालिक थे अपने मन के
हवा हुए वे दिन बचपन के

गर्मी भर मॅंड़नी चलती थी
फुरसत हमें नहीं मिलती थी
स्वयं कुनाई रहे उसाते
कभीकभी थे सुख पहुंचाते –
न्योते शादी ब्याह लगन के
हवा हुए वे दिन बचपन के

रोज दोपहर नहर नहाना
और नहाकर घर आ जाना
चने और जौ की खा रोटी
रही फड़कती बोटी-बोटी
थुलथुल कभी न थे हम तन के
हवा हुए वे दिन बचपन के

सुबह-शाम नित चारा-सानी
खींच कुएं से घर का पानी
चेहरा हरदम मुसकाता था
अतिथि जब कभी घर आता था-
स्वामी हो जाते थे धन के
हवा हुए वे दिन बचपन के ।

महेश चन्द्र त्रिपाठी

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 4 Comments · 210 Views
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