|| हवा चाल टेढ़ी चल रही है ||
|| हवा चाल टेढ़ी चल रही है ||
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भरोसा हम करें
किस पर
हवा भी आजकल की
चाल टेढ़ी चल रही है ।
भटका हुआ सूरज
अंँधेरा बाँटता फिरता
नगर की वीथियों में
दिखावे को बची संवेदना
दम तोड़ती
सर्द होती रीतियों में
हँस रहा
उस पर समय,
लाचार
बूढ़ी चेतना
हाथ केवल मल रही है ।
गर्दन तोड़ देते हैं
मुखौटा ओढ़कर रिश्ते
अपने ही घरों के,
जो कुछ भी हैं जिन्दा
बचे संबंध,
हैं केवल
यहाँ किस्मत भरोसे
बात है अचरज भरी
मर तो चुकी
इंसानियत
साँस अब भी चल रही है ।
था कभी अच्छा समय
अनुकूल
बहती थी हवा
विश्वास के झरोखे से,
लड़खड़ाये भी कदम जो
थाम लेते मीत बन्धु
थे भरोसे के
परिवर्तन का
समय निर्मम
विरासत पीढ़ियों की
देख लो अब ढल रही है ।
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डॉ.प्रणव गौतम
राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय एवं चिकित्सालय हण्डिया, प्रयागराज
मोबाइल 9319531752