हवा चल रही
गीतिका
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हवा चल रही मंद मंद तब, झूम रही हर डाली है।
मन में नयी उमंग जगाती, मनहर छटा निराली है।
सूरज बादल में छुप जाता, गर्मी से राहत मिलती।
नभ पर चारों ओर छा रही, श्याम घटा मतवाली है।
झील की तरह गहरी बोझिल, आंखों में है मादकता।
मत खोकर रह जाना इनमें, सूरत भोली भाली है।
मत निराश हो जाना राही, आशा दीप जलाए रख।
रात बीतने पर हो जाती, स्वर्णिम भोर उजाली है।
सदा सत्य का साथ निभाते, सह लेते हैं कष्ट बहुत।
कर लेता अपनी मनमानी, यहां जो शक्तिशाली है।
ऋतु परिवर्तन का साया है, बढ़े प्रदूषण के कारण।
गर्म हुआ जाता जब मौसम, सूख रही हरियाली है।
समय बीतता जाता अविरल, कभी नहीं ठहरा करता।
दिन बीता जब शाम ढली अब, रात आ रही काली है।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २१/०६/२०२४