हवा का रू
आज हवा का रूख दिवार सा है
लहरों का सा भाव है, मझधार सा है
ये तो अभी किनारा है,जाना तो दूर है
दिल मेरा हर दिवार गिराने को तैयार सा है
नसीब न दे साथ फिर भी चलना है
मंज़ील को पा लेने का सरोकार सा है
रेत पे निशां बताएंगे रासता
चला होगा उस पर, कोई बेज़ार सा है
कशमकश ही रोक रही है रासता
कशमकश को इतना अघिकार सा कयों है